जितने तितली बम और मच्छर बम बनेंगे....नुकसान ज़्यादा होगा भाई पत्रकारों का ही।
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जितने तितली बम और मच्छर बम बनेंगे.... नुकसान ज़्यादा होगा भाई पत्रकारों का ही।
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और जैसे आसमान का किनारा भी नज़र आने लगा है... कितना क़रीब... कई दिनों के बाद मौसम कितना खुल गया है... फ़िर भी कितना बेचैन है ये मन... आखिर ये मौसम बदलता क्यों है... और हम भी क्यों बदलते है... मौसम की तरह... कभी तितली कभी मच्छर बम.... कभी सुना है तितली बम क्या होता है??